Thursday, April 30, 2015

भूख ने उसकी आंखों में पैंसठ बसंत भर दिए



एक भूख देखी आज अल सुबह सड़क के किनारे
पास में बने आलीशान मैरिज गार्डन से
निकले शादी के अपशिष्ट में से
टूटे प्लास्टिक के चम्मच के सहारे कुछ तलाशते हुए
हड्डियों के ढांचे से निकली बिलबिलाती जीभ की शक्ल में
बासी सब्जियों की ग्रेवी में चम्मच को फफेड़कर
उंगलियों से झूठी पत्तलों को उलटती हुई
प्लास्टिक की थैलियों में भरी सूखी तंदूरी रोटियां बटोरते
वह कृशकाय सी आत्मा जो बमुश्किल चालीस पार होगी
भूख ने उसकी आंखों में पैंसठ बसंत भर दिए

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