Monday, January 25, 2016


कभी लौटकर आओ राही
-मुरारी गुप्ता

कितने साल हुए तुम्हें
देखे हुए राही
कहां चले गए तुम
सदियां सी बीत गई तुम्हें देखे
कभी तो लौटकर आओ
मेरे पहलू में बैठो
गुनगुनाओं, मुझसे बात करो
कुछ अपनी सुनाना
थोड़ा मैं बताऊंगा
कि कितना बदल गया है
तुम्हारा यह पुश्तैनी गांव।
शरारतें तो कर नहीं पाओगे
बड़े हो गये होगे ना
मैं भी अब बूढ़ा हो गया हूं
काबिल नहीं रहा कि
तुम्हें कुछ दे सकूं
हड्डियों सी मेरी सूखी टहनियां
अब किसी काम की नहीं, भले ही
पर अभी भी अपने पहलू में
भर भर छाव देने को उतावला हूं
मेरे बहुत से अंश भी उभर आए हैं
मेरे चारों ओर
आओ तो देखना तुम
तुम्हारी कहानियां सुनाता हूं उन्हें कभी कभी
तुम भी सुनाते होंगे ना
अपने बच्चों को मेरी कहानियां
याद है तुम्हें
एक बार
बछड़ा खा गया मेरी कोमल टहनियों को
कितना रोये थे तुम उस दिन
फिर उसी के गोबर को कपड़े में लपेट
बांध दिया था मेरे ठूठ से
कि मैं जल्द से बड़ा हो जाऊं
अब तो मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूं
कभी लौटकर देखो तो।
गांव में मेरी छाव तले
तुम्हारे यार जब चर्चा करते हैं
तुम्हारी बहुत याद आती है राही
कभी तो चले आओ
तुम्हें वक्त कहां होगा लेकिन
तुम्हारी शहरी जिंदगी से
दफ्तर, समाज, रिश्ते
बच्चे, बैठक, गपशप
नेट, चैट, व्हाट्सएप
इन सबमें कहां मिल पाएंगे हम
कोई गूगल भी याद नहीं दिलाएगा हमारी
इससे पहले कि गांव के किसी बूढ़े की
अंतिम क्रिया में मेरा अंतिम संस्कार हो
मेरे इन हाड़ो से लिपट भर जाओ राही
सदियां सी बीत गई
कभी तो लौटकर आओ राही।