Wednesday, May 5, 2010

क्लासों का दौर खत्म, मिलने के लिए अब ढ़ूंढ़ेंगे बहाने...

जनवरी 4 से आईआईएमसी में एक बार फिर से यानी लगभग छह साल बाद छात्र के रूप में अपने भीतर छिपे छात्र को फिर से जिंदा किया। आईआईएस (भारतीय सूचना सेवा) के सभी प्रशिक्षुओं को छह महीने के प्रशिक्षण के लिए आईआईएमसी के हरे-भरे वातावरण में पढ़ने के लिए भेजा गया। रहने के लिए हॊस्टल दिया गया। पूरे चार महीने छात्र जीवन का भरपूर आनंद लेने के बाद 4 मई को हमारी छुट्टी हो गई। दरअसल हमारी क्लास रूम स्टडी अब अपने आखिरी पड़ाव पर आ पहुंची है। अब हमें मीडिया यूनिट में प्रेक्टिकल जानकारी के लिए जाना होगा। इस बीच खुशखबर यह है कि हम सभी अधिकारियों को कामनवेल्थ गेम में तीन महीने के लिए अटैच किया जा रहा है। उम्मीद है वहां हमें नए माहौल में काम करने का मौका मिलेगा। शायद बहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा। सभी साथी इस बात से काफी खुश हैं। मगर ज्यादातर साथी लोग क्लास खत्म होने से निराश है। निराश इसलिए नहीं है कि क्लास नहीं हो पाएंगी...पढ़ नहीं पाएंगे, बल्कि निराश इसलिए हैं कि अब आपस में मिलने के बहाने तलाशने पड़ेंगे। बात क्लास की हो रही थी। ...क्लासों के दौरान कई फैकल्टी ऐसी भी आईं जिन्होंने हम पर मानसिक दबाव बनाते हुए हमसे कहा- विहेव लाइक आफिसर। मगर हम थे कि- आफिसर बनने को तैयार नहीं थे। इस दौरान पत्रकारिता की बहुत सी पुरानी बातों को नए अंदाज में सीखा। कुछ न्यूज लैटर बनाए। हालांकि आईआईएमसी के कंप्यूटरों में हिंदी फोंट की दिक्कतों के बावजूद हमने जैसे-तैसे करके न्यूज लैटर निकाले। इस दौरान हमने वीडियो कैमरे और स्टिल कैमरों पर भी हाथ साफ किए। एक डाक्युमेंट्री तैयार की। आईआईएमसी में पढ़ने आने वाले गुट निरपेक्ष देशों के छात्रों के ऊपर। उनके अनुभवों को इस डाक्युमेंट्री में शामिल किया। लगभग 24 विदेशी छात्र-छात्राओं के इस गुट में कईयों से अच्छी खासी दोस्ती भी हो गई। पिछले अप्रेल महीने की आखिरी तारीख को वे भी हमसे रुखसत हो गए।
इन दिनों हमारे बहुत से साथी लोग अभी तक अपने न्यूज लेटरों में उलझे हैं। कई लोग रेडियो असाइनमेंट तैयार कर रहे हैं। एक बात जो मैं कहना भूल गया. रेडियो टाक और रेडियो ड्रामा भी हमने तैयार किया। मैंने रेडियो टाक को रिकार्ड करवाया। इसी दौरान हमने एक कार्यक्रम भी किया,जिसका हर पहलू हम सभी साथियों ने तैयार किया। नाटक, गीत, शेरो-शायरी, सालसा जैसी तमाम विधाओं के जरिए हमने यहां कई यादों को संजोया और ये यादें तमाम उम्र हमारे जेहन में सूखे पत्तों की माफिक बनी रहेंगी। एक तस्वीर भी आपको यहां देखने को मिलेगी।
इन दिनों गरमी तेजी से पड़ रही है। लिहाजा सभी साथी लोग हास्टल के कमरों में एसी की ठंडी छाव में चैन की नींद निकाल रहे हैं। जब तक कुछ नई ताजा नहीं मिले...हम भी चैन लेते हैं।
जय-जय