Wednesday, October 4, 2017

रेल ज्ञान-1


महवा के जंगल/ आरपीएससी का धणी-धोरी

उल्टी गिनती शुरू कर दो, सर। इस सरकार को तो अब भगवान भी नहीं बचा सकता। अब आप देखिए, हमारे जिले में स्कूल लेक्चरर की दो सौ ढाई सौ से ज्यादा सीटे खाली हैं, लेकिन खुन्नस निकालने के लिए मुझे अपने घर से तीन सौ किलोमीटर दूर झाड़ौल के जंगलों में छोड़ दिया है, जहां हर पल जान को खतरा है। मेरी स्कूल में दसवीं बारहवीं क्लास के बच्चों पर मर्डर के केस हैं। मास्टरों को वे ओए...कहकर बुलाते हैं। क्या इज्जत है सर हमारी स्कूल में। बारहवीं तक की स्कूल में हम छह टीचर हैं। आप सोचिए नंगा नहाएगा क्या निचोड़ेगा क्या।  परिवार को यहां ला नहीं सकता। न ढंग की रहने की जगह है न पढ़ने की। अब सोच रहा हूं पास में गुजरात है, वहां से डेली अप डाउन करूंगा। जब तक चल रही चलाऊंगा। जयपुर अजमेर रेल सफर में अनारक्षित डिब्बे में उपरी बर्थ पर मेरे साथ बैठे और अभी तीन महीने पहले ही सरकार में स्कूल लेक्चरर भर्ती हुए एक युवा का रेल ज्ञान सुन रहा था। भाई साहब सब कुछ क्लियर होने के बाद भी जब सरकार नौकरी नहीं दे तो युवा कहां जाए। हमने आंदोलन किए, धरने प्रदर्शन किए, तब जाकर पोस्टिंग दी। पूरी खुन्नस निकाल कर। यहां गुजरात बोर्डर पर महवा के जंगलों के बीच। बारहवीं क्लास में कुल जमा तेरह बच्चे और उन्हें मुख्यमंत्री का नाम तक ढंग से लिखना नहीं आता। उन्हें पढ़ाऊं क्या और लिखाऊं क्या। सोच रहा हूं जीओ (राज्यादेश) करवा करवा लूं। लेकिन उसका भी कोई सूत्र नहीं बैठ रहा।
फिर ट्रांसफर व्यवस्था पर ज्ञान देते हुए कहने लगा- एक लाख तक तो खर्च कर सकता हूं। इससे ज्यादा मेरी औकात नहीं है। तब ही सामने ऊपर की बर्थ पर बैठा एक सरकारी चिकित्सालय में कंपाउंडर बोल उठा- सर, इतना तो हमारे जैसे कंपाउंडर के लिए ले लेते हैं। आप तो लेक्चरार हो, गजेटेड हो। गजेटेड शब्द आते ही लेक्चरार भाई साब का दर्द उभर गया। कोई जानता तक नहीं साब, कि हम गजेटेड हैं। हमारी कोई इज्जत नहीं है। सरकार प्रोबेशन पीरियड में इतना भर देती है कि बस, दाल रोटी निकल जाती है। अब जीओ (राज्यादेश) के लिए एक लाख का जुगाड़ कहां से करें। सामने वाले ने ज्ञान दिया, सुना है आरएसएस वालों की बहुत चलती है। उनका कोई आदमी मंत्रीजी को कह दे, तो आपका काम बन सकता है। आरएसएस के किसी स्टेट लेवल के आदमी को पकड़ लो। लेक्चरार बोला, मैं तो अपने पूरे रिश्तेदारों तक को नहीं जानता। अब आरएसएस के आदमी को कहां से पकड़ूं। कोई बीच का आदमी पकड़ना पड़ेगा। अपने पिछले प्रयासों की चर्चा करने लगा, एक मंत्री के पीए से मेरी बात हुई है। उसने कहा कि उसके मंत्री के पास यह डिपार्टमेंट नहीं है, नहीं तो वह एक लाख रूपए में यह काम आसानी से करवा देता। खुद के भीतर उम्मीद जगाते हुए बोला- मेरे एक दोस्त ने अभी जीओ (राज्यादेश) करवाकर अपने घर के पास ट्रांसफर करवाया है। उसने उम्मीद जताई है और कहा है एक लाख तैयार रखना। मेरा प्रिंसिपल भी उस स्कूल में नहीं रूकना चाहता। वो भी कह रहा था, जितने भी लग जाए उसे भी वहां से निकलना है। कुछ भी नहीं होने की स्थिति की कल्पना करते हुए युवा लेक्चरार कहने लगा, अगली बार या तो कांग्रेस सरकार आ जाए नहीं तो कुछ भी नहीं हुआ और अगली बार भी यही सरकार रही तो आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा।
फिर चर्चा आरपीएससी की। युवा लेक्चरार फिर शुरू हो गया, सर, सरकार जानबूझकर गलत पेपर बनाती है। एक दो सवाल जानबूझकर गलत डालती है, जिससे कोर्ट में केस हो। युवा बेचारे लड़ते झगड़ते रहे। सोचो कोई आईएएस जैसा आदमी ऐसे गलत सवाल डाल सकता है क्या। आईएएस से उसका तात्पर्य शायद आरपीएससी के सचिव या अध्यक्ष से रहा होगा। कहने लगा- कोर्ट-कचहरी के चक्कर में आठ-दस महीने बेरोजगारों के ऐसे ही चले जाते हैं। और वकीलों की फीस अलग। इस चक्कर में सरकार आठ-दस महीने की तनख्वाह बचा लेती है। गंभीरता से कहने लगा सर, ये पूरी रणनीति से होता है। फिर चुनाव आ जाएंगे। आचार संहिता के बाद तो बेरोजगार मुंह ताकते रहो। नई सरकार आएगी। फिर समीक्षा करेगी। फिर भर्तियां निकालेगी। तब तक बेचारे युवा आधे बूढ़े हो जाते हैं। और आरपीएससी, साब, आरपीएससी का कोई धणी धोरी नहीं है। और कोई बेरोजगार इसके चक्कर में आ जाए तो उसके ब्याह के लाले पड़ जाए। लेकिन डिग्रियां तो इकट्ठी कर ली। कंपाउंडर साब बोले- डिग्रियां तो बेकार है साब। अब डिग्रियों का जमाना गया।