Wednesday, August 26, 2015

सांस बाकी है जैसे अभी जी उठेगा वो....



सांस बाकी है जैसे अभी जी उठेगा वो
सीने से लग सारे आंसू उडेल देगा मुझमें
वो दर्द जो ज़ज्ब है उसके सीने में
कहां से लाएगा जुबां उन्हें लफ्ज देने
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उसकी जिंदा धड़कनें कंपकंपा रही हैं 
कि यादों के कोनों में खूं जमा है अभी 
कुछ गर्म सांसे बाकी हैं उसकी सांसों में
कि हलक में अटके हैं  आंखों के आंसू अभी
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उसके लबों पे ठहरे हुए वो आखिरी अल्फाज
कि किसी लंबे प्रेमगीत का आखिरी अंतरा है
वो गम जो उसके लफ्ज में छिप गए कहीं
कहां से लाएगा जुबां उनका इजहार करने
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Wednesday, August 12, 2015

बातों-बातों में मन की बातें: सॉरी तनव

बातों-बातों में मन की बातें: सॉरी तनव: साप्ताहिक अवकाश का दिन था। मंगलवार। 12 अगस्त 2015। परिवार के साथ जयपुर से लगभग 12 किलोमीटर दूर एक वाटर पार्क में घूमने के लिए गए। वहां ...

सॉरी तनव



साप्ताहिक अवकाश का दिन था। मंगलवार। 12 अगस्त 2015। परिवार के साथ जयपुर से लगभग 12 किलोमीटर दूर एक वाटर पार्क में घूमने के लिए गए। वहां वाटर पार्क में मैंने, प्रेरणा और तनव ने खूब आनंद लिया। तनव को मेंढ़क की तरह पानी में तैरने के अंदाज में घूमने लगा। ये देखकर हम दोनों को बहुत आनंद आया। उसे पानी से कुछ ज्यादा ही लगाव है। वहां लग रही बड़ी स्लाइडो पर वह फिसलने की जिद करने लगा। उन पर नौ साल से कम उम्र के बच्चों को फिसलने की अनुमती नहीं है। जो ठीक भी है। जब मैं उस पर फिसल रहा था, तो लगा....मैं कहां जा रहा हूं। बहुत उत्तेजनापूर्ण और रोमांचक था।
लेकिन इस आउटिंग से मुझे एक सबक मिला। तनव को हम एक छोटे पूल में, जो वहां नजदीक ही था, में लेकर गए। वहां बच्चों के  लिए स्लाइडें थीं। हम तीनों ने उनका खूब आनंद लिया। एक चौड़ी स्लाइड पर तनव को मैंने जबरदस्ती फिसलाने के लिए उसे अपने से छुड़ाकर हल्का सा धक्का दे दिया। वह इससे बहुत डर गया। हालांकि नीचे प्रेरणा खड़ी थी। वह स्लाइड पर बीच में ही रुक गया और जोर से रोने लगा। कांपता हुआ। शायद बहुत डर गया था। मुझे बाद में पछतावा हुआ।  महसूस हुआ, उसकी सहमति से यह करता तो उसको भी आनंद आता और उसका डर निकल जाता।
सॉरी तनव, आगे से और ध्यान रखूंगा।   

Friday, August 7, 2015

आकाशवाणी के भीगे सुरों से डा. कलाम को नमन



27 जुलाई की उदासी भरी रात के लगभग आठ बज चुके थे। एक महान आत्मा, सुदूर पूर्व शिलांग में धरती की छाती में सिर छिपाए जमीन पर बैठ गया था। लोग शंकित हो उठे। उनका भाषण सुन रहे छात्रों के मन में गहरी उदासी छा गई। उनकी ओर प्रवाहित हो रही ऐतिहासिक वाणी पर विराम लग गया था। सुनने की उनकी आकांक्षाएं अपनी अधूरी इच्छाओं के साथ समाप्त हो गई। महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम इहलोक को अलविदा कह चुके थे। ठीक इसी समय, नौ बजकर 14 मिनट और लगभग 15 सैकंड पर, देशभर को दिनभर के घटनाक्रम को समाचारों के रूप में सुनाने वाले आकाशवाणी के इवनिंग बुलेटिन ने डा. एपीजे अब्दुल कलाम की अनंत की उडान को रिपीट हैडलाइंस में पहली खबर बनाकर आम जन को यह दुखभरा समाचार सुनाया। दिन भर के तीन बड़े बुलेटिन में से एक शाम बुलेटिन में आखरी वक्त पर डा. कलाम के अवसान के समाचार को हैडलाइंस में शामिल कर आकाशवाणी ने पत्रकारिता का राष्ट्रीय कर्तव्य निभाया।
जिस वक्त देशभर के निजी रेडियो चैनल के एंकर लोगों को रोमांटिक और तड़कीले गाने सुनाकर अपनी रात की पारी शुरू कर रहे थे उस वक्त आकाशवाणी के विविधभारती सहित तमाम चैनलों ने अपनी सभी सिग्नेचर ट्यून बदल ली और जिंदगी से जुड़े अफसानों की रिकार्डिंग्स को आर्काइव से बाहर निकाल लिया। सुबह की ओपनिंग ट्यून को सांरगी और वायलिन में बदल दिया। रोमांस और प्रेम के गीतों को जीवन के रागों में बदल दिया। राष्ट्रीय शोक के पूरे सातों दिन। इस पर चिंतन किया जाए, तो निजी रेडियो चैनल भी क्या हुतात्माओं के लिए ऐसा प्रयास नहीं कर सकते थे। हालांकि कुछ निजी रेडियो चैनल ने इस दिशा में प्रयास किया था। कितने अफसोस की बात है कि कुछेक निजी रेडियो चैनल को छोड़ दें, तो उन्होंने अपने गानों का शिड्युल तक नहीं बदला।
आकाशवाणी के विज्ञापन प्रसारण सेवा- विविधभारती के राजस्थान के प्रमुख राकेश जैन बताते हैं कि जैसे ही हमें डा. कलाम साहब के निधन के जानकारी मिली। हमने यह सूचना अपने साथियों को प्रेषित कर आकाशवाणी के कार्यक्रमों में तत्काल प्रभाव से तब्दीली कर दी। वह कहते हैं कि जैसे ही हमें किसी राष्ट्रीय शख्सियत के निधन की जानकारी मिलती है, आकाशवाणी के सभी केंद्रों को  तत्काल यह जानकारी किसी भी माध्यम से भेज दी जाती है। बिना किसी सरकारी आदेश की प्रतीक्षा किए। और इसके बाद गानों के सभी शिड्युल, ओपनिंग और क्लोजिंग ट्यून को तत्काल बदल दिया जाता हैं। वह बताते हैं कि सरकार की ओर से घोषित राष्ट्रीय शोक के दिनों के दौरान आकाशवाणी किसी भी तरह के व्यंग्य और हंसी-मजाक से जुड़े कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं करता। इसके अलावा रोमांस, तड़कीले-भड़कीले गीत-संगीत भी इन दिनों नहीं बजाया जाता। वह कहते हैं कि इन दिनों जीवन से जुड़ें तरानों का ही आकाशवाणी पर प्रसारण किया जाता है।
इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता हैं कि 27 जुलाई से दो अगस्त तक किशोर कुमार के गाए मशहूर गीत- जिंदगी का सफर...है ये कैसा सफर को लगभग बीसियों बार प्रसारित किया गया। राकेश जैन बताते हैं कि ऐसे समय में गीतों को चुनना बड़ा चुनौती काम होता है। लगातार पुराने गीतों को बजाना बोझिल हो सकता है। ऐसे में नए गानों में से ऐसे तरानों को को चुनना होता है जो सामयिक हो । डा. कलाम के अवसान की पृष्ठभूमि में अगर आपको आकाशवाणी पर बहती हवा सा था वो........चिट्ठी न कोई संदेश.....कहां तुम चले गएयह जो देश है मेरा......स्वदेश है तेरा, जैसे तराने सुनने को मिलें तो निश्चित ही मन में एक श्रद्धांजली का भाव पैदा होगा। पुराने गीतों के माध्यम से श्रद्धासुमन अर्पित करना आसान है, लेकिन गीतों में चुनना और उन्हें प्रसारित करना एक चुनौती है। और इस चुनौति में आकाशवाणी खरा उतरा है। पुराने गीतों के जरिए तो उन्हें याद करना बहुत आसान है। मसलन, तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे...ये जीवन है....इस जीवन का....., रूक जाना नहीं....तू कहीं हार के...,चल उड़ जा रे पंक्षी....कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया...आदमी मुसाफिर है....आता है जाता है....सुख के सब साथी...दुख में न कोय... जैसे सैकड़ों गीतों में डा. कलाम को याद किया गया। राष्ट्रीय शोक के सात दिनों के दौरान अगर श्रोताओं ने खाली दोपहरों में विविधभारती सुनी होगी तो उन्हें उनकी महफिल से हम उठ तो आए....आज सोचा तो आंसू भर आए और जाने कहां गए वो दिन....  जैसे गीतों के माध्यम से जननायक कलाम को जरूर याद किया होगा। सुबह, दोपहर, शाम और रात। चारों पारियों में आकाशवाणी के तमाम चैनलों ने अपने श्रोताओं का मनोरंजन तो किया, लेकिन पूरे इस एहसास के साथ कि उनके बीच उनके जन नायक अब नहीं रहे।
आकाशवाणी जयपुर केंद्र के निदेशक रहे कवि और शायर इकराम राजस्थानी कहते हैं कि एक वक्त था, तब राष्ट्रीय शोक के दौरान आकाशवाणी पर सिर्फ शोक संगीत ही बजा करता था। इसके लिए बाकायदा संग्रहालय में अलग से रिकॉर्डिंग आज भी मौजूद हैं। लेकिन अभी थोड़ा परिवर्तन आया, जो स्वभाविक भी है। लेकिन इसके बावजूद आकाशवाणी ने लोक प्रसारक की अपनी भूमिका पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाई है। वे उस दौर को, जब प्रसारण के माध्यम न के बराबर थे, याद करते हुए कहते हैं उस वक्त आकाशवाणी की धुनों के जरिए पता चल जाता था कि देश में राष्ट्रीय शोक पसरा हुआ है। वह बताते हैं उस दौरान हिलेरियस और रिदम के गीतों को बंद कर दिया जाता था और लो टोन गाने ही बजते थे।
पिछले कई वर्षों से रेडियो ब्रॉडकॉस्टिंग से जुड़े जसविंदर सहगल बताते हैं कि इन सात दिनों में आकाशवाणी सुनकर फिर से विविधभारती के पुराने दौर की याद ताजा हो गई। वह बताते हैं कि इन सात दिनों में आकाशवाणी ने जिस जिम्मेदारी के साथ अपनी भूमिका निभाई, वह सराहनीय है। वह याद करते हैं कि पहले किसी राष्ट्रीय शख्सियत के निधन पर अक्सर जल तरंग या मातमी शहनाई सुनाई पड़ती थी, लेकिन इस बार आकाशवाणी ने पुराने गानों को तो बहुत सुंदर ढंग से पेश किया ही, नए गानों में से भी चुन चुन ऐसे गीत बजाए जो सार्थक बन पड़े। रेडियो के पुराने श्रोता और ब्रॉडकॉस्टर सुरेश पारेख भी उनसे सहमती जताते हुए बताते हैं कि ऐसे दौर में जब देश का जननायक इस दुनिया में नहीं रहा, रेडियो जैसे माध्यम के लिए बड़ी चुनौती होती है कि क्या प्रसारित करें, और कैसे करें। पूरी स्क्रिप्ट को तत्काल बदलना पड़ता है। लेकिन आकाशवाणी के चैनल ऐसे नाजुक समय में पूरी जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य निभाते हैं। आकाशवाणी के एक और नियमित श्रोता संजय कौशिक कहते हैं कि ऐसे नाजुक वक्त में आकाशवाणी ही एकमात्र ऐसा रेडियो चैनल रहा है जिसने हमेशा अपनी मर्यादा निभाई है। यही वजह है कि पंद्रह साल के किशोर से लेकर पचहत्तर साल के बुजुर्ग उसके नियमित श्रोता हैं। वे कुछ निजी रेडियो चैनलों से इस बात से खफा नजर आते हैं कि इस दौरान भी इन चैनलों पर हनी सिंह का चार बोतल वोदका बजाया गया।
बहुत कम लोगों को यह दिलचस्प तथ्य मालूम होगा कि डा. कलाम आकाशवाणी को सुनने के शौकीन थे और आकाशवाणी के समाचारों के माध्यम से ही देश-दुनिया की खबर लेते थे। डा. कलाम से बिछुड़ने की विरह वेदना के स्वर जब आकाशवाणी से जब गूंज रहे थे तब अनंत आकाश में विचरती उनकी आत्मा ने निश्चित ही गुनगुनाया होगा.....तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे............................