Sunday, April 26, 2015

ये अपराध है, घोर अपराध



आज मैंने दस-बारह गहरी सांस लेकर
धरती से कर्ज ले लिया
मुझे सिर्फ सामान्य सांस लेने का हक भर है
यह हक भी मेरा अपना ईजाद किया हुआ है
मैंने नाचते मोर, चुगते कबूतर और उड़ती चिडियाओं को देख लिया
क्या ये सब अधिकार है मुझे?
सुबह से शाम तक हजारो टन कार्बनडाई आक्साइड, मोनो आक्साइड ही तो छोड़ता हूं
हजारो कागजों से सैंकड़ों दरख्तों को मौत देता हूं
फिर क्यों अतिरिक्त और गहरी सांस का हक है मुझे?
मैंने पीपल, तुलसी की हरी पत्तियों को भी चूमा आज
एक बगीचे में फूलों को निहारने का अपराध किया
ये अपराध है, घोर अपराध
मैंने कभी पीपल/तुलसी की जड़ों को सींचा ही नहीं
कभी किसी फूल की डाली से बतियाया नहीं
फिर क्यों ये हक है कि मैं उन्हें देखूं, छूऊं या सूंघू
मैंने सूरज की अतिरिक्त किरणें भी सोंख ली
अपनी कमीज उतार सीने पे पड़ने दिया उन्हें
घूम-धूम कर पी गया ढेरों रश्मियां
मैंने कल रात चांद को देखने का भी पाप किया
पाप, क्योंकि इन्हें वापस देने को कुछ भी नहीं मेरे पास
जीवनदाता सूरज को कभी हाथ भी नहीं जोड़े
औषधियों के जीवन दाता चांद को नमन नहीं किया कभी
देते भी हैं हम तो क्या, अल सुबह से धरती को
मल, मूत्र, विष्ठा थूक और गंदगी
कभी सुबह उठकर अपने अपराधों के लिए क्षमा नहीं मांगी
पैर टिकाने से पहले हाथों से धरती को नहीं छुआ
फिर, जब कभी थर्रा जाती है धरती
तो क्यों कराह उठते हैं हमारे मन
हमारे पाप तब स्मरण क्यों नहीं होते हमें।

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