बिज्जू
मुरारी गुप्ता
बड़ी बिल्ली जैसा दिखने वाला जंगली जीव
बिज्जु जैसे ही शहर के पास जंगल की झाड़ियों के झुरमुट में छिपी अपनी चिंतित मां
के पास पहुंचा, तो मां आंखों में चमक भर आई। वह उसे चाटने लगी। कहां चला गया था,
चिंतित मां ने उससे पूछा, पूरी रात से तेरी राह देख रही थी। बिज्जू को कुछ समझ
नहीं आ रहा था। वह बुरी तरह घबराया हुआ था, जैसे किसी यातनाघर से बचकर भागा हो। उसका
पेट घबराहट से फूल और सिंकुड़ रहा था। मां ने चाटकर उसे तसल्ली दी, तो उसे राहत
महसूस हुई। बिज्जू ने थोड़ी राहत महसूस की। कल रात वह जंगल के किनारे पीपल के पुराने
ऊंचे पेड़ से शहर की ऊंची बिल्डिंगों की चमकती लाइट देख वह भ्रमित हो गया था।
सोचा, कोई अद्भुत चीज है जो चमक रही हैं। उसने अभी तक जंगल के भीतर सूरज, चांद और
तारों की रोशनी को देखा था। उसे लगा सितारे जमीन पर उतर आए हैं। इन्हीं सितारों को
छूने की ललक से वह जंगल की समेट दी गई सीमा को लांघ कर शाम को शहर की ओर चला गया
और ऊंची बिल्डिंग के नीचे शहरी झाड़ियों में छिप गया। बच्चों ने देखा, तो घबरा गए।
फिर क्या था। चारों ओर हंगामा, शोर, लाठियां और पत्थर। बिज्जू यह सब देखकर बुरी
तरह घबरा गया। वह घबराया हुआ घरों की ओर भागने लगा। लोग लाठियां ले पीछे भागने
लगे। एक दो लोगों ने पत्थर फैंके जो उसकी आंख पर लगे। आंखों के किनारों से खून
बहने लगा। एक व्यक्ति ने इस मौके का फायदा उठा उसके पीछे की टांगों में जोर से
लाठी का वार किया। वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। कुछ लोगों के मन में दया के भाव उपजे।
उन्होंने लोगों के पीछे किया। इतने में बिज्जू मौका देख पास के ऊंचे पेड़ पर जा चढ़ा
। काफी देर बाद, जब सारे लोग वहां से जा चुके थे। बिज्जू ने इधर-उधर देखा और चुपके
से जंगल की ओर पहुंच गया, जहां उसकी मां उसका इंतजार कर रही थी। बिज्जू को फिर से सूरज,
चांद, सितारों और जंगल से प्यार हो गया।
No comments:
Post a Comment