Saturday, September 25, 2010

खामोश आवाज-है कोई सुनने वाला



अशांत वादियों की सैर से
तोपें, पत्थर, बंदूकें
सब शांत हो जाएंगे
सब फिर से
मुस्कराने लगेंगे,
अजानों में माना
फिर से चैन की अजान
सुन सकोगे,
मगर उन ददॆों का क्या
जो कैंपों में सिसक रहा है
बचपन से बूढ़ा हो गया
शहर-शहर भटक रहा है
शायद इसलिए कि
वह बंदूक नहीं उठाता
पत्थर नहीं फैंकता
आजादी की बात नहीं करता
है कोई कान वाला
नुमाइंदा,
धड़कते दिल वाला
मदॆ नेता,
संसद मागॆ पर
शायद नजर नहीं आता।
अजान के साथ घड़ियालों की आवाज
एक सपना ही रहेगा।

--हाल में केंद्रीय दल का कश्मीर दौरा

1 comment:

गीतिका गोयल said...

आपके मन की बात हम सबके मन की बात है. फर्क इतना है कि आप कहने का समय निकाल लेते हैं और हम बस सोचते ही रह जाते हैं... बधाई!!