Wednesday, December 21, 2011

खामोश ब्लॉग में कुछ पल ठहरा आज


बहुत दिन हुए, ब्लॉग ख़ामोशी से मेरी कलम का इंतज़ार करता रहा, कि शायद कभी अपनी वेवजह की व्यस्त जिन्दगी में से मेरे लिए कुछ पल, कुछ शब्द, कुछ श्याही निकालेगा। आज मैंने वो ख़ामोशी तोड़ी, कुछ फिजूल की बाते लिखने के लिए। कि अरुणाचल से जाने का वक़्त धीरे धीरे नजदीक आ रहा है। दिन, महीने, साल ओर फिर साल २०११ का दिसंबर का महिना भी बीता जा रहा है। महीनो की पीठ पर दिन ओर साल के कंधे पर बैठ महीने कब गुजर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। एक एक दिन करके डेढ़ साल गुजर गए।
अरुणाचल मेरे लिए इतना सुकून भरा रहेगा, मैंने नहीं सोचा था। आने से पहले मेरी कल्पनाओ में थोड़ी बेचैनी थी। मगर डर बिलकुल नहीं था। बन्दरदेवा दरवाजा (अरुणाचल का एंट्री पॉइंट ) पार करते ही वह बैचेनी भी सिरे से गायब हो गयी। हर दिन तनव के साथ नयी ताजगी के साथ गुजर रहा है। दुआ करो ऐसा ही चलता रहे।
यूँ भी अरुणाचल ने मेरे लिए कई स्मरणीय बाते, घटनाये जोड़ी हैं। यहाँ मेरा परिवार पूरा हो गया (तनव का जन्म )। मेरे माता-पिता ओर मेरे धर्म माता-पिता भी इस बहाने यहाँ की सैर कर गए, वर्ना चार धामों की यात्रा की सूची में अरुणाचल का जिक्र नहीं होता। उत्तरप्रदेश के लोग जरुर परशुराम कुंड में नहां जाते हैं. भारत सरकार को इनक्रेडिबल नोर्थ ईस्ट के लिए मुझे शुक्रिया कहना चाहिए। मैंने बैठे-बिठाये राजस्थान में नोर्थ-ईस्ट एक्सप्लोर कर दिया। फ़ोन पर तो रोज ही अपने मित्रों के साथ एक्सप्लोर करता हूँ। हाँ, वो आये या न आये इसकी मैं गारंटी नहीं लेता।
फिलहाल यहाँ राजनितिक शांति है। उठापठक बंद है। मगर आने से पहले से यहाँ रहने वाले अपने किसी इष्ट मित्र से फ़ोन जरुर करना कि कही बंद तो नहीं है। जो कि राजधानी में बहुत कोमन है। हाँ, मगर अरुणाचल है बहुत खूबसूरत। ऐसे कह लो कि हिमाचल प्रदेश को दाये तरफ से खींच दिया है। फिर ये शिवजी की तपस्या स्थली है। तो जाहिर है हर प्रकार के प्राणी यहाँ पाए जायेंगे। मगर वो यहाँ की खूबसूरती में इजाफा ही करते हैं।
अच्छा, अब बंद करता हूँ, शायद मेरा ब्लॉग आज मुझे अपने करीब पाकर धन्य हो गया होगा। करीब तो रोज होता हूँ, मगर उसकी तरफ नजर उठाकर देख भी नहीं पाता हूँ। अच्छा दोस्तों, राम राम।



Tanav with Mamma at Shiv Mandir, Itanagar

 
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Wednesday, June 8, 2011

अन्याय के धृतराष्ट्र की अब पतन की बारी है....


धर्म-अधर्म के बीच फिर जंग छिड़ी है
अधर्म के पक्ष में सत्ता, नेता और सरकार खड़ी है
रामलीला मैदानों पर सत्य लहुलुहान पड़ा है
सत्य पर कालिख पोतने को
संवाद, विवाद और गोलियां लिए
दुर्योधन-दुशासन आगे बढ़े हैं
धर्म का ज्ञाता धृतराष्ट्र ने
सत्ता के मोह से कान और आंख
मूंद लिए
युवराज की आंखों में
सिर्फ सत्ता का सपना है
गरीबों का निवाला खाने वाला
अब कुछ बोलेगा
अपना मुंह खोलेगा
महाराज्ञी की कथित कोमल भावनाएं
मध्यदेश के शकुनी ने सुखा डालीं
अपनी कुटिल-धूर्त चालों से
असत्य की चौसर बिछा डाली
धर्मक्षेत्र-कुरूक्षेत्र में
फिर से रण की तैयारी है
अन्याय के धृतराष्ट्र की
अब पतन की बारी है

Tuesday, May 24, 2011

पिता होने का सुकून






पिता होने का सुकून
सचमुच अद्भुत है
अपने ही नन्हें स्वरूप को
अपनी ही आंखों से निहारना
अपने ही कोमल चेहरे को
अपनी ही अंगुलियों से टटोलना
ये एहसास पिता होने पर ही होता है
भूख-प्यास-नींद-जीवन पीछे छूट जाता है
सिर्फ उसके होने का एहसास
ही शेष रहता है
उसका मंद-मंद मुस्काना, रोना
और सहज सुलभ बाल हरकते
जीवन के सागर में
आनंद की लहरे सी लगती हैं
ईश्वर सचमुच महान है
अपने ही अंश को
मां-पिता का निमित्त बना
उन्हें आनंद के सागर में डूबो देता है
और पिता
उस नन्हें में अपनी परछाई ढूंढता है
अपने नाते-रिश्तेदारों की बनाबटों को ढूंढ़ता है
जैसे ही अपनी परछाई का कुछ अंश
उस नन्हें में नजर आती है
पिता का ह्रदय उमड़ पड़ता है
सचमुच, पिता ऐसा ही होता....

Sunday, March 6, 2011

कुछ कविताएं

बेवस याचिका

बिना शब्दों की याचिका
और आंखों में बेवसी का पानी
कोई सुनेगा, शायद नहीं
क्योंकि जीभ के कान नहीं होते
लपलपाती जीभ की जड़ें
ह्यदय को नहीं छूती
काश वो ह्यदय को छू पाती
चूंकी वहां स्पंदन होता है
हर दुख-दर्द को महसूस करता है
तब शायद जीभ
कटे हुए मांस को निगलने में
लड़खड़ा जाती
.....................................
सुस्वादु इंसान

सुस्वादु इंसान
नवद्वारों से हर स्वाद चाहता है
किसी भी कीमत पर
किसी भी अनैतिकता पर
स्वाद की राहों के लिए
पुरावाणी को मोड़ लेता है
शब्दों को मनमाफिक बिछाता है
अपने ढंग से व्याख्या करता है
सुस्वादु इंसान
.....................................

Thursday, February 3, 2011

पुस्तक चर्चा ------योगेश्वर कृष्ण

हाल ही मुझे अपने एक पत्रकार मित्र के माध्यम से स्व. चमुपति एम ए शोध ग्रंथ योगेश्वर कृष्ण को पढ़ने का अवसर मिला। आज से लगभग साछ-पैंसठ साल पहले लिखी गई इस पुस्तक में कृष्ण चरित्र को विभिन्न ग्रंथों से तथ्यात्मक रूप में लेकर लिखा गया है। इसके प्रकाशन की जिम्मेदारी गाजियाबाद के समॆपण शोध संस्थान ने उठाई। भारत राष्ट के जनमानस को सदाचार की तालीम देने के लिए जरूरी है कि सत्पुरुषों के चरित्र-चित्रण के अभिव्यक्त किया जाए. इनमें दो ही व्यक्ति आदशॆ रूप है-एक श्री राम और दूसरे योगेश्वर कृष्ण। पुस्तक में कृष्ण को एक महापुरुष के रूप में चित्रित किया गया है। उनका जीवन एक आप्त पुरुष के समान है। पुस्तक में श्री कृष्ण को एक महान स्वप्न दृष्टा के रूप में बताया गया है, जिसे उन्होंने अपने जीवनकाल में भी चरिताथॆ करके दिखा दिया। जहां श्री राम ने मिथिला से लेकर लंका तक सारे भारत को एक सूत्र में आबद्ध किया तो श्री कृष्ण ने द्वारिका से लेकर सुदूर पूर्व मणिपुर तक सारे भारत को एक सूत्र में आबद्ध और एक दृढ़ केंद्र में के आधीन करके समस्त राष्ट्र को इतना बलवान और अजेय बना दिया कि महाभारत के पश्चात लगभग चार हजार साल तक अनेक विदेशी शक्तियों के बार-बार आघात के बावजूद आर्यावर्त को खंडित नहीं कर सकीं।
लेखक ने उन कवियों को आडे हाथों लिया है जिन्होंने इन महापुरुषों के अवांतर रूपों की चर्चा के लिए तो सैकड़ों ग्रंथ लिख डाले, लेकिन उनकी राष्ट्र निर्माता के रूप में, जो कि वर्तमान की आवश्यकता है की चर्चा नगण्य रूप में की है।
श्री चमुपति ने पुस्तक के लिए महाभारत के श्लोकों और अन्यान्य ग्रंथों के तथ्यों को वैज्ञानिक दृष्टि से नापतोल कर उनका विश्लेषण किया है। पुस्तक की भूमिका में ही श्री कृष्ण को
सा विभूतिरनुभावसम्पदां भूयसी तव यदायतायति
एतदूढगुरुभार भारतं वर्षमद्यं मम वर्तते वशे

माघ कवि ने शिशुपालवध में युधिष्ठिर से श्री कृष्ण को इन शब्दों से संबोधित करवाया है-भारी भार संभाले। कृष्ण काल में मगध सम्राट जरासंध भारत के एक बड़े भू-भाग का सम्राट था और और उसके साम्राज्य का आधार था पाशविक बल। वह भारत के शासन की विभिन्नता को मिटाना चाहता था। घर-घर का अपना राज्य हो और इस राज्य की अपनी शासन प्रणाली हो,यह उसे असह्य था। इस प्रयास में उसने कई कुलों और राजवंशों को नष्ट कर दिया। शिक्षा समाप्ति के बाद श्री कृष्ण ने अपने जीवन का लक्ष्य समूचे भारत को जरासंध के पंजे छुड़ाकर उसे आर्य साम्राज्य या दूसरे शब्दों में आत्मनिर्णय के मौलिक सिद्धांत पर आश्रित भारतवर्ष के छोटे-बड़े सभी प्रकार के राज्यों के संगठन, जिसे आज की राजनैतिक शब्दावली में कामनवैल्थ कह सकते हैं, की छत्र छाया में लाने का निश्चय किया। यहीं वह गुरुभार था, जिसे उठाने का बीड़ा श्री कृष्ण ने उठाया था।
पुस्तक में लेखक ने विभिन्न संवादों के माध्यम से बताया है कि श्री कृष्ण राजाओं की दिव्य सत्ता को नहीं मानते थे। वे राजा को जनता का प्रतिनिधि मानते थे। श्री कृष्ण के चरित्र में निजी और सार्वजनिक जीवन के आदर्शों का एक अद्भुत समन्वय पुस्तक में बताया गया है।
श्री चमुपति ने महाभारत कालीन सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था को दिलचस्प ढंग से पुस्तक में बताया है। श्री कृष्ण की कथित बाल लीलाओं को भी तथ्यात्मक ढंग से पेश किया है और बताया है कि अन्यान्य ग्रंथ लेखकों ने उन लीलाओं के अपने ढंग से मन-माफिक व्याख्या की है। पुस्तक में महाभारत कालीन युद्ध शैली, युद्ध में काम आने वाले हथियार, युद्ध के नियम और छल-बल आदि का दिलचस्प ढंग से वर्णन किया है। पुस्तक में लेखक ने उन कवियों को भी फटकार लगाई है, जिन्होंने श्री कृष्ण को रसिक रूप में प्रस्तुत कर अपने ह्रदय की विद्रुपताओं को कृष्ण पर आरोपित किया है। श्री कृष्ण का चरित्र वर्तमान भारत और विश्व की जरूरत है. आज हमें कुरुक्षेत्र के कृष्ण की आवश्यकता है, न कि बृज की कथित रसिक लीलाओं का बखान करने की। पुस्तक में कृष्णकालीन भारत का भव्य नक्शा भी दिया गया है, जो हमें आज से पांच हजार वर्ष पहले के भव्य भारत की तस्वीर पेश करता है।

Sunday, January 16, 2011

कश्मीर में तिरंगा क्यों न फहराया जाए?



कितनी अफसोस की बात है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कह रहे हैं कि लाल चौक पर तिरंगा फहराने से घाटी दहल जाएगी. क्या देश में तिरंगा फहराया जाना राष्ट्रद्रोह है. आजाद भारत का कोई भी नागरिक कहीं भी तिरंगा फहराने के लिए आजाद है. फिर श्री नगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराए जाने से उमर अब्दुल्ला क्यों डर रहे हैं. शायद अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए ही उन्होंने यह गैर जिम्मेदाराना बयान दिया है.
देश का दुर्भाग्य है कि अलगाव वादी ताकतें जब देश को तोड़ने वाले माओवादियों और कुछ कथित बुद्धिजीवी के साथ मिलकर देश की राजधानी में देश को तोड़ने वाले बयान देते हैं, तो दिल्ली के कान सब कुछ सुनकर भी अनसुना कर देते हैं, लेकिन जब श्रीनगर में तिरंगा फहराने पर अलगाव वादी कहते हैं कि इससे पूरा भारतीय महाद्वीप जल उठेगा तब भी दिल्ली के कानों पर जूं नहीं रेंगती. जो तिरंगा भारतीय आजादी का साक्षी है, भारतीय आन का प्रतीक है, उसकी अवहेलना पर भी दिल्ली नहीं दहलती है, तो यह तय है कि देश के कर्णधार अपना गौरव खो चुके हैं.
कुछ अलगाववादियों को तुष्ट करने के क्रम में क्या देश के मुंह पर पट्टी बांध दी जानी चाहिए. देश के नेतृत्व की इस प्रवृत्ति से पहले भी देश का बहुत कुछ खो चुका है। जाहिर है देश के नेतृत्व की इस अकर्मण्य प्रवृत्ति से देश की विखंडनकारी ताकतों को हौसला मिलेगा. वक्त की जरूरत है कि देश की एकता और अखंडता के लिए देश के मुख्यधारा के राजनैतिक दलों को आगे आकर सामूहिक प्रयास करने चाहिए. न कि मौन रह जाना चाहिए. मौन रहना भी बहुत बड़ा अपराध है.
अब वक्त अलगाव वादी ताकतों पर लगाम कसने का है. बहुत जी-हुजूरी हो गई उनकी. या तो सीधे बात करो या फिर भारत सरकार का अनुसरण करो. हमें बार-बार यह जताने की जरूरत नहीं है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है. वह तो सनातन रूप से भारत का हिस्सा है. उस पर तो कोई सवाल ही नहीं होना चाहिए. सवाल सिर्फ यह होना चाहिए कि नापाक पाक ने जिस कश्मीर को धोखेबाजी या हमारी कमजोरी से हथिया लिया है, उसे किस योजना से लिया जाए.
सवाल यह भी होना चाहिए कि कैसे लाखों विस्थापित कश्मीरी पंडितों को उनके मूल स्थान कश्मीर पहुंचाया जाए. उन्हें उनके मूल अधिकार, मूल जमीन और जीने का अधिकार दिलवाया जाए. उनकी जमीनों पर से आततायियों को कैसे हटाया जाए. उसके लिए कोलकाता से श्रीनगर ही नहीं, कन्याकुमारी से श्री नगर, राजकोट से श्रीनगर, अरुणाचल से श्रीनगर तक की विशाल यात्राएं आयोजित की जाए. अब देश जाग चुका है. और जागृत देश को बहुत दिनों तक अंधकार में नहीं रखा जा सकता।