Sunday, March 6, 2011

कुछ कविताएं

बेवस याचिका

बिना शब्दों की याचिका
और आंखों में बेवसी का पानी
कोई सुनेगा, शायद नहीं
क्योंकि जीभ के कान नहीं होते
लपलपाती जीभ की जड़ें
ह्यदय को नहीं छूती
काश वो ह्यदय को छू पाती
चूंकी वहां स्पंदन होता है
हर दुख-दर्द को महसूस करता है
तब शायद जीभ
कटे हुए मांस को निगलने में
लड़खड़ा जाती
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सुस्वादु इंसान

सुस्वादु इंसान
नवद्वारों से हर स्वाद चाहता है
किसी भी कीमत पर
किसी भी अनैतिकता पर
स्वाद की राहों के लिए
पुरावाणी को मोड़ लेता है
शब्दों को मनमाफिक बिछाता है
अपने ढंग से व्याख्या करता है
सुस्वादु इंसान
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