Friday, July 16, 2010

चलो भारी मन से जुदा हो जाएं

आखिरकार मन के किसी कोने में छिपे उस दर्द के अब बाहर आने का वक्त हो ही गया। लगभग छह महीने पहले इस साल के शुरुआत में जब आईआईएमसी में आईआईएस के फाउंडेशन कोर्स के लिए देशभर के साथी लोग एकत्र हुए थे, तो मन में ख्याल आया था कि जब छह महीने बाद यहां से जुदा होंगे, तो उस पीड़ा को कैसे सहन कर पाएंगे। मगर पिछले बीस दिनों से एक-एक कर साथी छूटते जा रहे हैं। मैं कल यानी 17 जुलाई को आईआईएमसी के हास्टल से रुखसत हो जाऊंगा। हास्टल में अब सिर्फ सुदीप्तो, मानस, रितेश, मनोज, जेना, सुंदरियाल, निशात और मधु बचे हैं। इनमें से निशात, जेना और सुंदरियाल की चूंकी पोस्टिंग दिल्ली में हैं, लिहाजा उन्हें यहीं रहना है। और मैं 26 जुलाई को देश के एक खूबसूरत हिस्से ईटानगर जाने की तैयारी में जुटा हूं। नई जगह जाने का मन में निश्चित रूप से उत्साह और उमंग है, मगर पिछले छह महीने से परिवार का हिस्सा बन चुके अपने भाईयों जैसे दोस्तों से बिछुड़ना बहुत बुरा लग रहा है। पता नहीं अब जिंदगी के कौनसे मुकाम पर इन तमाम दोस्तों से मुलाकात होने का मौका मिले। सभी साथियों ने अपना-अपना सामान पैक कर लिया है। सभी के टिकट हो चुके हैं। दोस्तों ने शुक्रवार को खूब खरीदारी भी की और रात को पार्टी भी मनाई।
साथ ही एक दुखद खबर, हमारे अपने साथी शुभारंजन के पिताजी की असमय मृत्यु ने हम सब साथियों को दुख से भर दिया। ईश्वर शुभा को इस संकट की घड़ी में हिम्मत प्रदान करें। वे घर में सबसे बड़े हैं, लिहाजा घर की जिम्मेदारी अब उनके कंधों पर हैं। और अक्टुबर में उसकी शादी की तारीख भी तय थी। मगर जो कछु होय, राम रचि राखा.........
ऱाम राम.....