Friday, March 7, 2008

यकीं करोगे.....

हम हर रोज अपना यकीं बेचते हैं
कुछ लोग खरीदते हैं, कुछ नही भी
मगर दुनिया यकीं से चलती है
हाँ मैंने अपना यकीं बेचने की कोशिश की
कोशिश कह लीजिये, हिम्मत या कुछ और
उसने हाँ भी भरी, मगर बात नही बनी
मैं उसे हर बार अपना यकीं दिलाता हूँ
उसकी आँखों मे मेरा यकीं नज़र तो आता है
मगर जुबा पर कभी नही आया
उसे डर लगता है शायद
उसके यकीं पर खरा नही उतर पाउँगा
मगर यकीं भी तो कोई चीज होती है
करोगे तभी तो जानोगे
खैर, मैं उसे यकीं दिलाता रहूंगा
ताउम्र, जिंदगी के हर पड़ाव पर
-मुरली

Monday, March 3, 2008

दर्द तब कम होगा ....

तुम्हारी यादों के कुछ टुकड़े
जेहन मे जिंदा हैं अभी
सोचता हूँ खाक कर दूँ इन्हें
या जोड़कर महल बना लूँ
महल बनाने की इजाज़त नही है
खाक करने की मेरी हिम्मत नही है
बहुत गहरे धंस गए शायद
कुरेदने से ताज़ा हो जाते है
सुनो, तुम्हारा चेहरा रोशनी देता है इन्हें
बेहतर है ख़ुद का चेहरा ही मोड़ लूँ
मगर कहना नामुमकिन है
दर्द तब भी कम होगा....

Saturday, February 23, 2008

कभी नन्हें मासूम को गौर से देखा हैनहीं देखा, तो देखना बहुत प्यारे होते हैंउनकी आंखों के सपने सच्चे होते हैं
तुम्हारी तरह धोखे का पानी नहीं होता उनमें

Thursday, February 21, 2008

हर

कुछ अश आर

दिल में जब तक तेरी चाहत की भरम जिंदा है
सारे अरमान तेरे सर की कसम जिंदा है
जब मिटने की हमे करती है कोशिश दुनिया
हम को महसूस यह होता है की हम जिंदा हैं
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अब ज़बा पर मेरी अंगारा कोई रख दे ज़रा
वर्फ का टुकडा निगलने से तो छले हो गए
बाद मे पूछेंगे सर के ज़ख्म से बहता लहू
पहले ये देखे कि किसके हाथ का पत्थर लगा
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समा गया था मिरे दिल मे जो नज़र कि तरह
ज़बा पर न आ सका हर्फे मोतबर कि तरह
कहीं भी जाऊं, मिरे साथ रहता है
तिरा ख्याल है इक ऐसे हमसफ़र की तरह
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क्षमा करें अच्छे लोगों की अच्छी बातें कहने की आदत है मेरी

Thursday, February 14, 2008

चन्द बातें

चन्द बातों मे मैं कई बातें लिखने की हिमाकत कर रहा हूं मुलायाज़ा फरमाइए
...जाने क्या मुझसे ज़माना चाहता है
हर शख्स मुझे आज़माना चाहता है
जिसके पास कुछ नहीं बचा लुटने के लिए
जाने क्यों हर कोई उसे ही लूट जाना चाहता है ......

Sunday, February 10, 2008

वो कहते हैं

वो कहते हैं ऊंचा है मकान मेरा

मैंने कहा सिडिया ज़मीं से जाती हैं

उसके अरमान kahin बादलों पर टिकते है

पर बादलों कि औकात दरिया की बूंदों बनती है


Sunday, February 3, 2008

ये राहें, काली
हांफते लोग उगलते व्हीकलाजैसे


मंजिल के दौड़े ही जा रहे हैंकहां ठहरेगी जिंदगी, किसी को मालूम नहींइन सबसे बचकर मैं शांती दूत का रुख करता हूंहां, वहीं सबका जाना-पहचानाकाली, सफेद गोल टेबुलों परसिगरेट की धुओं के छल्लेप्लेन डोसा और बेस्वाद सी कड़क चाय छोटे से बजट में लाखों की बातेंशायद काम की बातें और प्यार की बातेंमैं कुछ नहीं कह सकता....लोग यहां की मुलाकातों को मोहब्बत का नाम देते हैंखैर मैं ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखता..शायद इसलिए कि किसी से इतनी अंतरंग मुलाकात नहीं हुई...छोड़ो मैं भी क्या बातें करने लगा.मैं तो दौड़ती भागती जिंदगी की बात कर रहा थाचलो, फिर सड़क पर आते हैंये सड़क किनारे बिछी हरे रंग की बैंचेंकालेज की मस्ती में डूबे युवाऔर एक अधेड़ उम्र का जोड़ाशायद जिंदगी की परिभाषा तलाश रहे हैंएक शुरू कर रहा है, दूसरा किनारे पर हैक्या खोया और क्या पाया की तलाश में जुटेऔर मैंसड़क पर दौड़ती सफेद पट्टियों के बीचवतॆमान को पकड़ने की जुगत में....

सुनोजी जी लगाकर बोलो

कौन से दौर में रहते हो
कौन से दौर में रहते हो
हम पचास साल से यहां हैं,
आज तक, तूकारे से नहीं बोला किसी को
यह जी जी का ही कमाल है
जो हम आज यहां हैं
और आप जी कल के छोकरे
सीधा-सीधा बोलते हो,
कहते हो प्रोफेशनलिज्म का जमाना है
कौनसे प्रोफेशनलिज्म की बात करते हो, बॉ‍स
यहां सब ओर, जीकारे की सरकार है
ऊपर से नीचे तक,
जी जी कह कर ही तो पोजिशन पाई है,
किसी की बातों में प्रोफेशनलिज्म की बू आती हैतुम्हें?
सूंघने की भी हिमाकत मत करना
ऊबासी से लेकर छींक तक में,
मुस्कराहट से लेकर ठहाके तक में,
आसूं से लेकर दुःख के सागर तक में,
जीकारे के किटाणु और वायरस ही मिलेंगे
सुनो, यहां का यही रिवाज है,
जी कहो और भरपूर जीओ,
और हां,
आज के बाद फिर कभी
प्रोफेशलिज्म की बात मत करना,
बस जिन्दा रहना है तो,
आवाज नीची और जी जी कहते रहना