Sunday, February 3, 2008

ये राहें, काली
हांफते लोग उगलते व्हीकलाजैसे


मंजिल के दौड़े ही जा रहे हैंकहां ठहरेगी जिंदगी, किसी को मालूम नहींइन सबसे बचकर मैं शांती दूत का रुख करता हूंहां, वहीं सबका जाना-पहचानाकाली, सफेद गोल टेबुलों परसिगरेट की धुओं के छल्लेप्लेन डोसा और बेस्वाद सी कड़क चाय छोटे से बजट में लाखों की बातेंशायद काम की बातें और प्यार की बातेंमैं कुछ नहीं कह सकता....लोग यहां की मुलाकातों को मोहब्बत का नाम देते हैंखैर मैं ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखता..शायद इसलिए कि किसी से इतनी अंतरंग मुलाकात नहीं हुई...छोड़ो मैं भी क्या बातें करने लगा.मैं तो दौड़ती भागती जिंदगी की बात कर रहा थाचलो, फिर सड़क पर आते हैंये सड़क किनारे बिछी हरे रंग की बैंचेंकालेज की मस्ती में डूबे युवाऔर एक अधेड़ उम्र का जोड़ाशायद जिंदगी की परिभाषा तलाश रहे हैंएक शुरू कर रहा है, दूसरा किनारे पर हैक्या खोया और क्या पाया की तलाश में जुटेऔर मैंसड़क पर दौड़ती सफेद पट्टियों के बीचवतॆमान को पकड़ने की जुगत में....

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