Thursday, September 23, 2010


अंश.......

बरगद के पेड़ से छिटकी एक टहनी
कराहती हुई बोली
क्या अब मेरा कोई अस्तित्व नहीं
क्या अब मेरी नियती खत्म हो जाना है
मुस्कराता हुआ, अपनी हवा में लटकी जड़ों को
हवा में लहराता हुआ बरगद बोला
तुम्हारे भीतर मेरा अंश है
तुम गलकर धरती के भीतर
मेरी जड़ों से चिपककर
हवा में उठकर फिर से
एक दिन देखना
मेरे सीने से लग जाओगे.
तुम मुझसे अलग कहां हो
वक्त गुजरते कितना वक्त लगता है
तुम मेरे ही अंश हो, मेरे बहुत करीब

4 comments:

abhishek said...

wah wah

vandana gupta said...

बीज कभी नष्ट नही होता।

गीतिका गोयल said...

बिल्कुल सच!! पर स्वीकारना कभी-कभी मुश्किल!

Hetprakash vyas said...

TO>>>>>>>>>>>>>> AAp Bhi BIG B ki Rah par chal nikle. Badhai ho