Sunday, January 16, 2011

कश्मीर में तिरंगा क्यों न फहराया जाए?



कितनी अफसोस की बात है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कह रहे हैं कि लाल चौक पर तिरंगा फहराने से घाटी दहल जाएगी. क्या देश में तिरंगा फहराया जाना राष्ट्रद्रोह है. आजाद भारत का कोई भी नागरिक कहीं भी तिरंगा फहराने के लिए आजाद है. फिर श्री नगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराए जाने से उमर अब्दुल्ला क्यों डर रहे हैं. शायद अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए ही उन्होंने यह गैर जिम्मेदाराना बयान दिया है.
देश का दुर्भाग्य है कि अलगाव वादी ताकतें जब देश को तोड़ने वाले माओवादियों और कुछ कथित बुद्धिजीवी के साथ मिलकर देश की राजधानी में देश को तोड़ने वाले बयान देते हैं, तो दिल्ली के कान सब कुछ सुनकर भी अनसुना कर देते हैं, लेकिन जब श्रीनगर में तिरंगा फहराने पर अलगाव वादी कहते हैं कि इससे पूरा भारतीय महाद्वीप जल उठेगा तब भी दिल्ली के कानों पर जूं नहीं रेंगती. जो तिरंगा भारतीय आजादी का साक्षी है, भारतीय आन का प्रतीक है, उसकी अवहेलना पर भी दिल्ली नहीं दहलती है, तो यह तय है कि देश के कर्णधार अपना गौरव खो चुके हैं.
कुछ अलगाववादियों को तुष्ट करने के क्रम में क्या देश के मुंह पर पट्टी बांध दी जानी चाहिए. देश के नेतृत्व की इस प्रवृत्ति से पहले भी देश का बहुत कुछ खो चुका है। जाहिर है देश के नेतृत्व की इस अकर्मण्य प्रवृत्ति से देश की विखंडनकारी ताकतों को हौसला मिलेगा. वक्त की जरूरत है कि देश की एकता और अखंडता के लिए देश के मुख्यधारा के राजनैतिक दलों को आगे आकर सामूहिक प्रयास करने चाहिए. न कि मौन रह जाना चाहिए. मौन रहना भी बहुत बड़ा अपराध है.
अब वक्त अलगाव वादी ताकतों पर लगाम कसने का है. बहुत जी-हुजूरी हो गई उनकी. या तो सीधे बात करो या फिर भारत सरकार का अनुसरण करो. हमें बार-बार यह जताने की जरूरत नहीं है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है. वह तो सनातन रूप से भारत का हिस्सा है. उस पर तो कोई सवाल ही नहीं होना चाहिए. सवाल सिर्फ यह होना चाहिए कि नापाक पाक ने जिस कश्मीर को धोखेबाजी या हमारी कमजोरी से हथिया लिया है, उसे किस योजना से लिया जाए.
सवाल यह भी होना चाहिए कि कैसे लाखों विस्थापित कश्मीरी पंडितों को उनके मूल स्थान कश्मीर पहुंचाया जाए. उन्हें उनके मूल अधिकार, मूल जमीन और जीने का अधिकार दिलवाया जाए. उनकी जमीनों पर से आततायियों को कैसे हटाया जाए. उसके लिए कोलकाता से श्रीनगर ही नहीं, कन्याकुमारी से श्री नगर, राजकोट से श्रीनगर, अरुणाचल से श्रीनगर तक की विशाल यात्राएं आयोजित की जाए. अब देश जाग चुका है. और जागृत देश को बहुत दिनों तक अंधकार में नहीं रखा जा सकता।

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