Tuesday, May 24, 2011

पिता होने का सुकून






पिता होने का सुकून
सचमुच अद्भुत है
अपने ही नन्हें स्वरूप को
अपनी ही आंखों से निहारना
अपने ही कोमल चेहरे को
अपनी ही अंगुलियों से टटोलना
ये एहसास पिता होने पर ही होता है
भूख-प्यास-नींद-जीवन पीछे छूट जाता है
सिर्फ उसके होने का एहसास
ही शेष रहता है
उसका मंद-मंद मुस्काना, रोना
और सहज सुलभ बाल हरकते
जीवन के सागर में
आनंद की लहरे सी लगती हैं
ईश्वर सचमुच महान है
अपने ही अंश को
मां-पिता का निमित्त बना
उन्हें आनंद के सागर में डूबो देता है
और पिता
उस नन्हें में अपनी परछाई ढूंढता है
अपने नाते-रिश्तेदारों की बनाबटों को ढूंढ़ता है
जैसे ही अपनी परछाई का कुछ अंश
उस नन्हें में नजर आती है
पिता का ह्रदय उमड़ पड़ता है
सचमुच, पिता ऐसा ही होता....

2 comments:

durga nath said...

अति सुंदर रचना... मेरी अनुभूतियां जैसे हूबहू आपके शब्दों में उतर आई हैं

abhishek said...

बधाई हो ,, भाई,, पिता बनने के साथ ही इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए,, तुम्हारे साथ इतना रहने पर भी तुम्हारे सृजन के इस रचना पक्ष का तो अब पता चल रहा है....