बेवस याचिका
बिना शब्दों की याचिका
और आंखों में बेवसी का पानी
कोई सुनेगा, शायद नहीं
क्योंकि जीभ के कान नहीं होते
लपलपाती जीभ की जड़ें
ह्यदय को नहीं छूती
काश वो ह्यदय को छू पाती
चूंकी वहां स्पंदन होता है
हर दुख-दर्द को महसूस करता है
तब शायद जीभ
कटे हुए मांस को निगलने में
लड़खड़ा जाती
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सुस्वादु इंसान
सुस्वादु इंसान
नवद्वारों से हर स्वाद चाहता है
किसी भी कीमत पर
किसी भी अनैतिकता पर
स्वाद की राहों के लिए
पुरावाणी को मोड़ लेता है
शब्दों को मनमाफिक बिछाता है
अपने ढंग से व्याख्या करता है
सुस्वादु इंसान
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4 comments:
Kitna kuch keh diya in shabdon mein !
kuch bhi kaho Gupta ji lekin ab apki Kavita shaily lubhane lagi hai. kuch bolti si nazar ane lagi hai. badhaiyan.
क्या कहर ढा रहे हो भाई,,,
murari ji ki jai ho
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