Thursday, December 11, 2014

उसका छोटा कद, उसे अपना सा लगता है



घर बदला, परिवेश बदला
पड़ौसी बदले, चेहरे बदले
हवा, पानी, रोशनी का एंगल
तुलसी, अशोक, नीम, पीपल
यहां वे सब नहीं है
पंख फैलाए मोर
खिड़कियों से आती चिरचिराहट
ये भी नहीं है
चीनू, केशु, अज्जू, अनुश्री भी नहीं है
उम्र में भले बड़े थे
लेकिन पक्का याराना था
उन सभी से उसका
उनके चेहरे अभी उतरे नहीं है उसके मन से
जब तब घुमड़कर आ जाते है
तो तलाशता है जयपुर वाला घर
लेकिन उसकी तलाश
दीवारों से टकराकर रह जाती है
हां, हमारे लिए तसल्ली है
अभी एक नया हमदम मिला है उसे
कद में छोटा उम्र में उससे तीन गुना
वह उसका अन्नु भैया है
उसका छोटा कद, उसे अपना सा लगता है


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